Life

Thursday, September 29, 2011

मिर्जा गालिब

- मिर्जा गालिब (Mirza Ghalib)

हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले

बहुत निकले मेरे अरमाँ

, लेकिन फिर भी कम निकले

डरे क्यों मेरा कातिल क्या रहेगा उसकी गर्दन पर

वो खून जो चश्म

--तर से उम्र भर यूं दम--दम निकले

निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये हैं लेकिन

बहुत बे

-आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले

भ्रम खुल जाये जालीम तेरे कामत कि दराजी का

अगर इस तुर्रा

--पुरपेच--खम का पेच--खम निकले

मगर लिखवाये कोई उसको खत तो हमसे लिखवाये

हुई सुबह और घर से कान पर रखकर कलम निकले

हुई इस दौर में मनसूब मुझसे बादा

-आशामी

फिर आया वो जमाना जो जहाँ से जाम

--जम निकले

हुई जिनसे तव्वको खस्तगी की दाद पाने की

वो हमसे भी ज्यादा खस्ता

--तेग--सितम निकले

मुहब्बत में नहीं है फ़र्क जीने और मरने का

उसी को देख कर जीते हैं जिस काफिर पे दम निकले

जरा कर जोर सिने पर कि तीर

--पुरसितम निकले

जो वो निकले तो दिल निकले

, जो दिल निकले तो दम निकले

खुदा के बासते पर्दा ना काबे से उठा जालिम

कहीं ऐसा न हो याँ भी वही काफिर सनम निकले

कहाँ मयखाने का दरवाजा

'गालिब' और कहाँ वाइज़

पर इतना जानते हैं

, कल वो जाता था के हम निकले

--

चश्म

--तर - wet eyes

खुल्द

- Paradise

कूचे

- street

कामत

- stature

दराजी

- length

तुर्रा

- ornamental tassel worn in the turban

पेच

--खम - curls in the hair

मनसूब

- association

बादा

-आशामी - having to do with drinks

तव्वको

- expectation

खस्तगी

- injury

खस्ता

- broken/sick/injured

तेग

- sword

सितम

- cruelity

क़ाबे

- House Of Allah In Mecca

वाइज़

- preacher

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