Life

Thursday, September 29, 2011

बढ़े चलो

बढ़े चलो

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द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी

वीर तुम बढ़े चलो

धीर तुम बढ़े चलो

साथ में ध्वजा रहे

बाल दल सजा रहे

ध्वज कभी झुके नहीं

दल कभी रुके नहीं

सामने पहाड़ हो

सिंह की दहाड़ हो

तुम निडर

,हटो नहीं

तुम निडर

,डटो वहीं

वीर तुम बढ़े चलो

धीर तुम बढ़े चलो

प्रात हो कि रात हो

संग हो न साथ हो

सूर्य से बढ़े चलो

चन्द्र से बढ़े चलो

वीर तुम बढ़े चलो

धीर तुम बढ़े चलो

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