Life

Friday, May 24, 2013

Madhushala

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१।
प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।२।
प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३।
भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,कभी कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।४।
मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।।५।
मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवाला,
'
किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
'
राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।' ६।
चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
'
दूर अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,हिम्मत है बढूँ आगे को साहस है फिरुँ पीछे,किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।।७।
मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,और बढ़ा चल, पथिक, तुझको दूर लगेगी मधुशाला।।८।
मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,रहे हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला।।९।
सुन, कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला,सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,बस पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।।१०।
जलतरंग बजता, जब चुंबन करता प्याले को प्याला,वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला,डाँट डपट मधुविक्रेता की ध्वनित पखावज करती है,मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला।।११।
मेहंदी रंजित मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला,अंगूरी अवगुंठन डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला,पाग बैंजनी, जामा नीला डाट डटे पीनेवाले,इन्द्रधनुष से होड़ लगाती आज रंगीली मधुशाला।।१२।
हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले,पथिक, घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला।।१३।
लाल सुरा की धार लपट सी कह इसे देना ज्वाला,फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं,पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला।।१४।
जगती की शीतल हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला,जगती के ठंडे प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला,ज्वाल सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,जलने से भयभीत जो हो, आए मेरी मधुशाला।।१५।
बहती हाला देखी, देखो लपट उठाती अब हाला,देखो प्याला अब छूते ही होंठ जला देनेवाला,
'
होंठ नहीं, सब देह दहे, पर पीने को दो बूंद मिले'ऐसे मधु के दीवानों को आज बुलाती मधुशाला।।१६।
धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।१७।
लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,हर्ष-विकंपित कर से जिसने, हा, छुआ मधु का प्याला,हाथ पकड़ लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा,व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला।।१८।
बने पुजारी प्रेमी साकी, गंगाजल पावन हाला,रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला'
'
और लिये जा, और पीये जा', इसी मंत्र का जाप करे'मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला।।१९।
बजी मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी प्रतिमा पर माला,बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला।।२०।

Tuesday, May 14, 2013

Intelligence (Short Story)


 
An old man lived alone in a village. He wanted to spade his potato garden, but it was very hard work. His only son, who would have helped him, was in prison. The old man wrote a letter to his son and mentioned his situation.
 
Dear Son, I am feeling pretty bad because it looks like I won't be able to plant my potato garden this year. I hate to miss doing the garden, because your mother always loved planting time. I'm just getting too old to be digging up a garden plot. If you were here, all my troubles would be over. I know you would dig the plot for me, if you weren't in prison. Love, Dad
 
Shortly, the old man received this Telegram -
 
 
"For Heaven's sake, Dad, don't dig up the garden. That's where I buried the GUNS" at 4a.m.
 
The next morning, a dozen FBI agents and local police officers showed up and dug up the entire garden without finding any guns.
 
Confused, the old man wrote another note to his son telling him what happened, and asked him what to do next.
 
His son's reply was: "Go ahead and plant your potatoes, Dad. It's the best I could do for you from here ."
 
- Moral of the Story - No matter where you are in the world, if you have decided to do something deep from you heart, you can do it.

.

__,_._,___

Wednesday, May 8, 2013

The Hagia Sophia Museum In Istanbul, Turkey



 
 
Hagia Sophia, "Holy Wisdom" is a former Orthodox patriarchal basilica, later a mosque, and now a museum in Istanbul, Turkey. From the date of its dedication in 360 until 1453, it served as an Eastern Orthodox cathedral and seat of the Patriarchate of Constantinople, except between 1204 and 1261, when it was converted to a Roman Catholic cathedral under the Latin Empire. The building was a mosque from 29 May 1453 until 1931, when it was secularized. It was opened as a museum on 1 February 1935.
 
The Church was dedicated to the Logos, the second person of the Holy Trinity, its dedication feast taking place on 25 December, the anniversary of the Birth of the incarnation of the Logos in Christ. Although it is sometimes referred to as Sancta Sophia (as though it were named after Saint Sophia), sophia is the phonetic spelling in Latin of the Greek word for wisdom – the full name in Greek being  "Shrine of the Holy Wisdom of God".
 
Famous in particular for its massive dome, it is considered the epitome of Byzantine architecture and is said to have "changed the history of architecture." It remained the world's largest cathedral for nearly a thousand years thereafter, until Seville Cathedral was completed in 1520. The current building was originally constructed as a church between 532 and 537 on the orders of the Byzantine Emperor Justinian and was the third Church of the Holy Wisdom to occupy the site, the previous two having both been destroyed by rioters. It was designed by the Greek scientists Isidore of Miletus, a physicist, and Anthemius of Tralles, a mathematician.
 
 
The church contained a large collection of holy relics and featured, among other things, a 15-metre (49 ft) silver iconostasis. The focal point of the Eastern Orthodox Church for nearly one thousand years, the building witnessed the Excommunication of Patriarch Michael I Cerularius on the part of Pope Leo IX in 1054, an act which is commonly considered the start of the Great Schism.
 
In 1453, Constantinople was conquered by the Ottoman Turks under Sultan Mehmed II, who subsequently ordered the building converted into a mosque. The bells, altar, iconostasis, and sacrificial vessels were removed and many of the mosaics were plastered over. Islamic features – such as the mihrab, minbar, and four minarets – were added while in the possession of the Ottomans. It remained a mosque until 1931 when it was closed to the public for four years. It was re-opened in 1935 as a museum by the Republic of Turkey.
 
For almost 500 years the principal mosque of Istanbul, Hagia Sophia served as a model for many other Ottoman mosques, such as the Sultan Ahmed Mosque (Blue Mosque of Istanbul), the Sehzade Mosque, the Süleymaniye Mosque, the Rüstem Pasha Mosque and the Kiliç Ali Pasa Mosque.